Monday, January 3, 2011

बेख़बर ...

दर्द है दर्द का बयाँ नहीं
राह है मंजिल-ओ-मकाँ नहीं
परस्तिश करते हैं तेरी ए नादाँ
मगर तेरा एक ज़र्रा भी मेहरबां नहीं