Tuesday, October 18, 2011

ज़िन्दगी का सफ़र...क्या खोया क्या पाया....

कितनी  रौशनी  है  शहर  के  आसमान  में
ना चाँद  है  ना  सितारों  का  निशाँ
कितनी  भीड़   है  इस  शहर  की  ज़मी  पे
ना  उम्मीद  है  ना  मंजिल  ना  इंसान

हम  मशीनों  में  बदल  रहे  हैं
भेड़  चाल  में  चल  रहे  हैं
सुकून  की  बातें  तो  बहुत  होती   है
लेकिन  सुकून  पाने  को  मचल  रहे  हैं

खोजते  हैं  अपने  बचपन  को
शरारतें  और  लड़कपन   को
पैसा  कमाने  के  लिए  सब  गवां  दिया
नशे  में  डुबो  दिया  अपने  क्रंदन  को

कैसे  बचपन  से  बड़े  होने  के  सपने  पाले
बड़े  होकर  आसमान  छु  लेने  के  इरादे
कैसे  धीरे  धीरे  सब  कुछ  भुला  बैठे
वो  दोस्ती ,वो  रिश्ते , वो  खुद  से  किये  वादे

अब  फिर  से  बचपन  जीने  को  मनन  करता  है
माँ  की  गोद में  सोने  को  मन   मरता  है
दिनभर  खेलके  भी  थकान  नहीं  होती  थी
साड़ी  परिकल्पनाये कहानियों  मैं  होती  थी  

अब सब खो गया सा लगता है
रात का बीता सपना सा लगता है
रात तो चली जाती है लेकिन
नयी सुबह का आना कल्पना सा लगता है



फना हो गए जिसकी आरज़ू में
ना वो सफ़र ख़त्म हुआ ना ,ना वो अंजाम मिला 

Saturday, October 1, 2011

जो तुम देख सकते....

जो तुम देख सकते इस चेहरे के पीछे तो,
सच्चाई का पर्दा फ़ाश हो जाता...
जो तुम देख सकते इन आँखों के भीतर,
तो मुहब्बत का रास्ता साफ़ हो जाता...
जो तुम जान पाते की शराफत लिबास की मोहताज नहीं,
तो इन स्याह कपड़ो का रंग पाक़ हो जाता....
जो तुम सुर मिलाते मेरी हँसी में,
तो गुनाहों की रातों का मंज़र शफ्फाक हो जाता...
जो तुम जलते इस आतिश-ए-वफ़ा में,
तो ये परवाना ख़ुशी से खाक हो जाता.....



नादान मुहब्बत की आरजू थी लेकिन,
मुहब्बत में नादानी की सज़ा का अंदाजा नहीं था....

Tuesday, September 13, 2011

युव आव्हान ..

राजनीती ये प्रचंड है
साम दाम दंड है
मानवता खंड खंड है
सफेदपोशों का पाखंड है

देश को ये बेचते हैं
अपनी रोटी सेकते हैं
राष्ट्र सुरक्षा को धत्ता बता के
बस अपने घर को देखते हैं

बेच के सब खा गए ये
हाथ जोड़े आ गए ये
लाशों की राजनीती कर के
तिजोरियां बना गए ये

कही नहीं विचार है
हर रोज़ समाचार है
आतंक भ्रसटाचार का तांडव
इनका ही उपहार है

रीड हीन लोग हैं ये
दिमाग इनके कुंद हैं
मानव मूल्य और विकास
इनके घर में बंद हैं

कही पे भ्रष्टाचार है,
कही पे अत्याचार है
सघन धरा पे नाश का विस्तार है
ठोकरों पे खेलता है,
विश्व भर को ठेलता है
उस कामगार के विनाश का आसार है

जो रक्त से सीमा खींचता है
धूप में जो सींचता है
जय जवान ,जय किसान
उनको कौन पूछता है

बापू ,भगत चन्द्रशेकर को
आज कौन पूछता है
दाम से ही काम होगा
येही नारा गूंजता है

युवा इतना सुस्त क्यों है
नेता इतना चुस्त क्यों है
जेल मैं जो है आतंकी
इतना तंदुरुस्त क्यों है

आवाज़ दो अपने सभी को
समाज के सच्चे व्यक्ति को
आज नहीं तो कभी नहीं
जगाओ आत्म शक्ति को

उदित हो तो सूर्य हो
गिरो तो उल्कामुखी
याद तुमको राष्ट्र रखे
तब जय होगी युवा तेरी

Monday, September 12, 2011

किसका कुसूर है...

बीते पल की परछाइयां
वो लम्हे वो रुस्वाइयां
क्यों हैं ये तन्हाइयां
किसका कुसूर है

दर्द की मक्कारियां
इश्क की नाकामियाँ
खिज्र की दुश्वारियां
किसका कुसूर है

ये अश्को की आबादियाँ
वफ़ा की खुश्क वादियाँ
रूहानी रिश्तो की कब्रें
जिस्मानी हक की शादियाँ
किसका कुसूर है

ये इल्जामों की गवाहियां
ये वक़्त की सफाइयां
इंसानों की खुदाइयां
किसका कुसूर है

ख्यालो की सरगोशियाँ
मेरे दिल की खाना बदोशियाँ
ये गुरूर ये बेहोशियाँ
किसका कुसूर है



"कशमकश हैं ,कोशिशें हैं,कामयाबी दूर है....
ज़िन्दगी है या जुआ है,'बेखुद' ये जुआ भी खूब है...
कोशिशें हैं मंजिलें हैं ,राह आसां पर नहीं,
एक दिन तो मिल ही लेंगे ये मंसूबा भी खूब है..."

Sunday, September 11, 2011

दिशाहीन...

ज़िन्दगी का उन्माद था तब
अब जीने के उम्मीद नहीं
ख़्वाबों से सजी थी ज़िन्दगी
पर अब आँखों में नींद नहीं
अथाह प्रेम की चाह थी तब
अब चाहत से भी प्रेम नहीं
शब्द बाण पारंगत थे तब
अब बातों में वो तेज नहीं
दुश्मन थी सारी दुनिया तब
मृत से भी कोई द्वेष नहीं
हवा में चलता था कभी
अब पैरों के नीचे ज़मीन नहीं
पल पल तब उत्साह था
अब अगाध से भी नेह नहीं
क्या हो गया है जाने
जीवन के उत्साह को
ताक़ पर रख दिया है सब कुछ
जाने किसकी चाह है

"एक सादगी के पीछे चलता रहा मगर,
'बेखुद' हूँ मुझे चैन आता क्यों नहीं "

Saturday, May 14, 2011

बेपरवाह...

हुए बेपरवाह ज़िन्दगी से,तेरी यादों में जले
इक तेरी तस्वीर के आगे ही बेबस हो गए
मिलने का मकसद पूछते हो
ये बहाना खूब है....
तेरे तस्सवुर में रात भर जागा किये
भूल से भी सोचा न तुने
ये बहाना खूब है...
चाँद लम्हों की ख़ामोशी,वीरां इस दिल को कर गयी
आह भी खामोश सी है
ये तराना खूब है...
तेरी खुशियों की खातिर कोशिशें करते रहे
तेरा गम से ग़मगीन हुए, तेरे दर पे मर गए
इस का भी सबब पूछते हो
ये बहाना खूब है...

Wednesday, May 11, 2011

दास्तान-ए-मुहब्बत

हमने जिनकी याद में ज़िन्दगी गुज़ार दी...
वो फिर भी बेवफाई के सुबूत -ओ -गवाहात दे गए ...
निशाँ-ए-सवालिया लगा दिया उम्र भर की मुहब्बत पे...
वो जुर्म की ताकीद में रकीबों के बयानात पे गए.....
ज़िन्दगी बसर हुई अश्कों के कैद में...
वो मौत को भी हमारी दर्द के जज़्बात दे गए....
मय्यत पे भी आये तो तारीख़ की तरह ...
जनाज़े को भी दलील -ओ -सवालात दे गए ...
इस बेरहम जहां में भी रुसवाइयां मिली ..
वो फातिहे में भी इल्ज़ामात दे गए.....
इस ज़र्रा -ए-ज़मीं से रिहाई तो हो गयी...
ख़ुदा के घर भी रंज की हालात दे गए....
इस बेखुदी पे हस दी खुदाई भी
वो सिर्फ हमारे हँसने के वादे-ओ-हालत पे गए.....

Thursday, April 21, 2011

बदकिस्मत....

चाहकर भी जता नहीं सकते,
पूछने पर भी बता नहीं सकते
ये कैसी मुहब्बत है,गोया की मुरव्वत है
के तुम्हे खोते तो रहते हैं ;लेकिन पा नहीं सकते....
ग़मों के ये तराने लिखे तो हैं लेकिन
इन्हें सिर्फ देख सकते हैं तुझे सुना नहीं सकते...
तुम गर पूछ बैठो की मुहब्बत है तुम्ही से तो
हम सच भी कह नहीं सकते,और झुठला नहीं सकते...
इस मायूसी और तन्हाई मैं तेरी यादें मुकम्मल है
अकेले से तो रहते हैं,मगर तनहा नहीं रहते...
तेरी खुशियों की खातिर मुहब्बत को क़त्ल कर बैठे
मगर इस कुर्बानी का सबाब कभी पा नहीं सकते....

Thursday, March 10, 2011

असमंजस....

असमंजस में हूँ मैं
प्रेम की अनजान राहों पे
कदम न रखे मैंने कभी
कुछ अनमना सा मन है
कुछ बेबस दिल हूँ में

ऑंखें झुका के चलता हूँ
गिरता और संभालता हूँ
प्रश्न न करे कोई इरादों को
इन घूरती नजरों के बीच
एक बदहवास सा दिल हूँ मैं
असमंजस में हूँ मैं

Monday, January 3, 2011

बेख़बर ...

दर्द है दर्द का बयाँ नहीं
राह है मंजिल-ओ-मकाँ नहीं
परस्तिश करते हैं तेरी ए नादाँ
मगर तेरा एक ज़र्रा भी मेहरबां नहीं