Tuesday, September 13, 2011

युव आव्हान ..

राजनीती ये प्रचंड है
साम दाम दंड है
मानवता खंड खंड है
सफेदपोशों का पाखंड है

देश को ये बेचते हैं
अपनी रोटी सेकते हैं
राष्ट्र सुरक्षा को धत्ता बता के
बस अपने घर को देखते हैं

बेच के सब खा गए ये
हाथ जोड़े आ गए ये
लाशों की राजनीती कर के
तिजोरियां बना गए ये

कही नहीं विचार है
हर रोज़ समाचार है
आतंक भ्रसटाचार का तांडव
इनका ही उपहार है

रीड हीन लोग हैं ये
दिमाग इनके कुंद हैं
मानव मूल्य और विकास
इनके घर में बंद हैं

कही पे भ्रष्टाचार है,
कही पे अत्याचार है
सघन धरा पे नाश का विस्तार है
ठोकरों पे खेलता है,
विश्व भर को ठेलता है
उस कामगार के विनाश का आसार है

जो रक्त से सीमा खींचता है
धूप में जो सींचता है
जय जवान ,जय किसान
उनको कौन पूछता है

बापू ,भगत चन्द्रशेकर को
आज कौन पूछता है
दाम से ही काम होगा
येही नारा गूंजता है

युवा इतना सुस्त क्यों है
नेता इतना चुस्त क्यों है
जेल मैं जो है आतंकी
इतना तंदुरुस्त क्यों है

आवाज़ दो अपने सभी को
समाज के सच्चे व्यक्ति को
आज नहीं तो कभी नहीं
जगाओ आत्म शक्ति को

उदित हो तो सूर्य हो
गिरो तो उल्कामुखी
याद तुमको राष्ट्र रखे
तब जय होगी युवा तेरी

Monday, September 12, 2011

किसका कुसूर है...

बीते पल की परछाइयां
वो लम्हे वो रुस्वाइयां
क्यों हैं ये तन्हाइयां
किसका कुसूर है

दर्द की मक्कारियां
इश्क की नाकामियाँ
खिज्र की दुश्वारियां
किसका कुसूर है

ये अश्को की आबादियाँ
वफ़ा की खुश्क वादियाँ
रूहानी रिश्तो की कब्रें
जिस्मानी हक की शादियाँ
किसका कुसूर है

ये इल्जामों की गवाहियां
ये वक़्त की सफाइयां
इंसानों की खुदाइयां
किसका कुसूर है

ख्यालो की सरगोशियाँ
मेरे दिल की खाना बदोशियाँ
ये गुरूर ये बेहोशियाँ
किसका कुसूर है



"कशमकश हैं ,कोशिशें हैं,कामयाबी दूर है....
ज़िन्दगी है या जुआ है,'बेखुद' ये जुआ भी खूब है...
कोशिशें हैं मंजिलें हैं ,राह आसां पर नहीं,
एक दिन तो मिल ही लेंगे ये मंसूबा भी खूब है..."

Sunday, September 11, 2011

दिशाहीन...

ज़िन्दगी का उन्माद था तब
अब जीने के उम्मीद नहीं
ख़्वाबों से सजी थी ज़िन्दगी
पर अब आँखों में नींद नहीं
अथाह प्रेम की चाह थी तब
अब चाहत से भी प्रेम नहीं
शब्द बाण पारंगत थे तब
अब बातों में वो तेज नहीं
दुश्मन थी सारी दुनिया तब
मृत से भी कोई द्वेष नहीं
हवा में चलता था कभी
अब पैरों के नीचे ज़मीन नहीं
पल पल तब उत्साह था
अब अगाध से भी नेह नहीं
क्या हो गया है जाने
जीवन के उत्साह को
ताक़ पर रख दिया है सब कुछ
जाने किसकी चाह है

"एक सादगी के पीछे चलता रहा मगर,
'बेखुद' हूँ मुझे चैन आता क्यों नहीं "