Friday, September 24, 2010

प्रेम आस...

जब पास ही प्रकाश हो
और चक्षुओ में आस हो
तो मन पटल को खोल दे
की सत्य का आभास हो

जब प्रेम का प्रयास हो
ह्रदय में मीठी प्यास हो
तो आलिंगन से सिक्त कर
की प्रेम का विश्वास हो

जब जीवन के पल में हर घडी
उस माधुरी का वास हो
तो छेड़ ऐसी मुरली तान
की कृष्ण का भी रास हो

जब मन में ये विश्वास हो
और जीतने की चाह हो
तो विरक्त हो के बंधन से
कर कर्म न निराश हो

Thursday, September 23, 2010

यादों का मकाँ ...

इस मकान में बंजरपन है
ख़ामोशी है , साया है
जबसे तेरी याद बसाई
तबसे कोई न आया है

जहाँ सारा तो रोशन लेकिन
मेरा घर अँधियारा है
बीते पल ही जुगनू बनकर
करते अब उजियारा हैं

इस बंजर मन , बीहड़पन में
आँखें भी सुनसान हुई
अब इस सड़क से अपने घर तक
रोज़ अकेले जाना है

चाँद भी टूटा ,दरख़्त भी सूखे
ये संसार हमारा है
ये डालें रोशन नहीं है अब
यहाँ बसेरा अंधेरो ने डाला है

जब याद तुम्हारी आती है
तो बारिश आँखें करती हैं
इस सैलाब में डूबते उतरते हैं
मुकद्दर ही बेचारा है

जब इन्साफ के दिन हम रोकर
खुदा के घर को जाएंगे
तब उस से पूछेंगे
किस गुनाह की सज़ा है मालिक
खुद दीवानगी का मारा है

मरके सबको सुकूँ है मिलता
हमको जीते जी क्यों मारा है
बेचैनी सी है मरके भी
आखिर क्या क़ुसूर हमारा है

Wednesday, September 22, 2010

दीप्तिमान ....

इन सूक्ष्म जुगनुओ से,
इन अलोकिक दीपों से,
मानवता की ये मशाल
दीप्तिमान कर दो

भ्रमर के गुंजन से
प्रकृति के क्रंदन से
आकाश के भंजन से
इस समस्त ब्रह्माण्ड को
गुंजायमान कर दो

इन देवो के संगम से
ऋषियों के संयम से
इस प्राकृत विहंगम से
अंश समावेश कर
मूर्त रूप का एक
इंसान कर दो

आज घमासान कर दो
दीप्तिमान कर दो
प्रेम की ,तपस्या की
एक रूपता की
समस्त पृथ्वी ,ब्रह्माण्ड की
एकता अक्षुन्नता को
अखंड प्राण कर दो
घमासान कर दो
गुंजायमान कर दो