Wednesday, September 22, 2010

दीप्तिमान ....

इन सूक्ष्म जुगनुओ से,
इन अलोकिक दीपों से,
मानवता की ये मशाल
दीप्तिमान कर दो

भ्रमर के गुंजन से
प्रकृति के क्रंदन से
आकाश के भंजन से
इस समस्त ब्रह्माण्ड को
गुंजायमान कर दो

इन देवो के संगम से
ऋषियों के संयम से
इस प्राकृत विहंगम से
अंश समावेश कर
मूर्त रूप का एक
इंसान कर दो

आज घमासान कर दो
दीप्तिमान कर दो
प्रेम की ,तपस्या की
एक रूपता की
समस्त पृथ्वी ,ब्रह्माण्ड की
एकता अक्षुन्नता को
अखंड प्राण कर दो
घमासान कर दो
गुंजायमान कर दो

1 comment:

  1. bhaicha...yeh hindi jo likhi hai...do you really urself understand all this...no offence meant yaar...it's really "alaukik" in today's world.
    kudos...

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