Tuesday, August 24, 2010

ये शाम ये तन्हाई का मंज़र ...

ये नीला आसमां
काला सा होता जा रहा है
क्या रात की तन्हाई में
इसे कोई याद आ रहा है

ये हरे भरे दरख़्त
रात की स्याही में ढल रहे हैं
वो ख़ुशनुमा मंज़र
अब सायों के हवाले हो रहे हैं

पंछियों का शोर -ओ -गुल
अहिस्ता अहिस्ता कम हो रहा है
रात के आग़ोश में
ये कैसा सितम हो रहा है

दूर , फ़लक
ज़मीं से मिलता जा रहा है
डूबते सूरज का अंगारा
पानी पे खिलता जा रहा है

इस मंज़र में
इस शाम की तन्हाई में
याद आते हैं बीते लम्हे
यादों की परछाई में

क्या मुझी से मेरा साया
दूर होता जा रहा है
क्या मेरी ज़िन्दगी का सबब
इस अंधेरे में खोता जा रहा है

शायद मुझे कोई याद आ रहा है
शायद मुझे कोई पास बुला रहा है

2 comments:

  1. the last stanza,kya mujhse mera saaya would nt be suffiecient, aqnyway this stanza is the best i liked, anglisized hindi me likhna humse nahin ho sakta

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  2. thanks a lot...well...i have used GOOGLE INDIC TRANLITERATION for writing in hindi....try it...accha hai

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