Saturday, October 1, 2011

जो तुम देख सकते....

जो तुम देख सकते इस चेहरे के पीछे तो,
सच्चाई का पर्दा फ़ाश हो जाता...
जो तुम देख सकते इन आँखों के भीतर,
तो मुहब्बत का रास्ता साफ़ हो जाता...
जो तुम जान पाते की शराफत लिबास की मोहताज नहीं,
तो इन स्याह कपड़ो का रंग पाक़ हो जाता....
जो तुम सुर मिलाते मेरी हँसी में,
तो गुनाहों की रातों का मंज़र शफ्फाक हो जाता...
जो तुम जलते इस आतिश-ए-वफ़ा में,
तो ये परवाना ख़ुशी से खाक हो जाता.....



नादान मुहब्बत की आरजू थी लेकिन,
मुहब्बत में नादानी की सज़ा का अंदाजा नहीं था....

3 comments:

  1. :S
    जो तुम जान पाते की शराफत लिबास की मोहताज नहीं
    तो इन स्याह कपड़ो का रंग पाक़ हो जाता

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