Wednesday, May 11, 2011

दास्तान-ए-मुहब्बत

हमने जिनकी याद में ज़िन्दगी गुज़ार दी...
वो फिर भी बेवफाई के सुबूत -ओ -गवाहात दे गए ...
निशाँ-ए-सवालिया लगा दिया उम्र भर की मुहब्बत पे...
वो जुर्म की ताकीद में रकीबों के बयानात पे गए.....
ज़िन्दगी बसर हुई अश्कों के कैद में...
वो मौत को भी हमारी दर्द के जज़्बात दे गए....
मय्यत पे भी आये तो तारीख़ की तरह ...
जनाज़े को भी दलील -ओ -सवालात दे गए ...
इस बेरहम जहां में भी रुसवाइयां मिली ..
वो फातिहे में भी इल्ज़ामात दे गए.....
इस ज़र्रा -ए-ज़मीं से रिहाई तो हो गयी...
ख़ुदा के घर भी रंज की हालात दे गए....
इस बेखुदी पे हस दी खुदाई भी
वो सिर्फ हमारे हँसने के वादे-ओ-हालत पे गए.....

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