दिलों के ग़म मिटाने को,आँखों से नमी हटाने को
जहाँ तेरा आंसू गिरा, उस राह को चमन बनाने को
तेरी यादों के सिरहाने ही , अपना जनाज़ा उठाने को,
उधार के ग़म लेकर, अपनी राह चले जाने को,
खुशमिजाज़ रहता हुआ,
मैं मसखरा हुआ....
यारों की महफ़िल मैं,सबके राज़ छुपाने को,
चाक जिगर सीने को,उधार की ज़िन्दगी जीने को,
उनकी राहत में अपनी राह भूल जाने को ,
उनके ग़म मैं अपनी ख़ुशी जलाने को,
स्याह सर्द रातों में,गर्म लावे की तरह बहता हुआ...
मैं मसखरा हुआ....
किसी ने न सिला दिया मेरे प्यार का,
दिल को न सुकून मिला,दाग़ दार का,
सर्द रातों को न मिली कोई खुशनुमा सुबह,
रात मैं गुज़र गया ,लम्बे इंतज़ार सा,
दिखा नहीं सीने में मेरे सुराख दर्द का,
मंज़र नज़र आता रहा, उस पार का,
खुदा भी नागवार हुआ,खुदाई भी गिरी,
मज़ाक सी ज़िन्दगी बख्शी,
वो ज़ालिम ,खुदा हुआ!!?,
अपने ग़म को पीता रहा,
सबको हँसाकर जीता रहा
सबको हँसाकर जीता रहा
मैं मसखरा हुआ?!!....
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