Friday, January 17, 2014

याद आते हैं।

बैठे बैठे गुज़रे जहाँ याद आते हैं..
ज़ेहन के सेहरा मैं, उनके कदमों के निशाँ याद आते हैं...
यूँही कभी ग़म मय्यसर होता है
जब ख्यालो मैं वो उजड़े मकाँ याद आते हैं... 

कितने मुद्दतों से मिलने के उम्मीद थी,
कैसे बीते वो पलों के इम्तेहां याद आते हैं...
ख्वाबों की दुनिया मैं रोज़ मिलने की ख्वाहिश 
और यादों के कारवाँ याद आते हैं..

अंजाम-ए-मुहब्बत आगाज़ से ही मु'अय्यन था
फिर भी उसके दर्द से परेशां याद आते हैं...
तूने जो लिखा था कभी अपने लबों से मेरे लबों पे
वो बेदर्द ज़ख़्मों के दिलकश निशाँ याद आते हैं...

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