जिसको था इंतज़ार तेरा उसको ही खबर नहीं,
बेपरवाह तू है मगर इतनी बेखबर नहीं,
महरूम हो मेरी चाहत से या हो इतनी मसरूफ,
की मेरा पता नहीं न सही,खुद की भी खबर नहीं!!
तेरी चाहत मैं अब वो कशिश नहीं,
डूब जाने जैसी अब वो नज़र नहीं,
बेफिक्र हो जाओ मेरी पुकार से ,
तेरी गलियों से अब मेरी रहगुज़र नहीं..
अब फ़ना है तेरे ख़याल
मेरे दिल-ओ-दिमाग़ से,
आती है बड़ी हसी मुझे अपने आप पे,
चाहत की फिकर नहीं, आँहो का असर नहीं,
जाओ, खुश रहो वहीँ जहाँ तुम्हारी कदर नहीं...
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